पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने दण्ड शास्त्र के बारे में जानकारी प्राप्त और इस नई पोस्ट में हम अपराधी सुधर जैसे पैरोल और परिवीक्षा(Parole & Probation) आदि के बारे में जानेगे ! ए पोस्ट विशेषकर ट्रेनिंग सेण्टर में लेक्चर देने वालो उस्ताद के लिए लेसन प्लान(Lesson Plan Banana) बनाने में बहुत उपयोगी साबित होगा ऐसा मेरा उम्मीद है और यह दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल के ट्रेनिंग सिलेबस के अनुसार है जो उनके प्रेसिज में दिया हुवा है !
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चुकी अपराध के लिए केवल व्यक्तिगत कारण ही नहीं बल्कि परिस्थितियां भी जिम्मेदार होती है इसीलिए अपराधी को कम से कम दंड देकर सुधारने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि अपराध के लिए कई प्रकार की मानसिक बीमारियां व्यक्तिगत विकास और सामाजिक और समायोजन भी जिम्मेदार होता है इसलिए अपराधी को एक मानसिक रोगी मानकर उसका सुधर के प्रयास भी करना चाहिए ।
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अपराधी का सुधार व उपचार की विधियां
1. परीविक्षा(Probation) : दोष सिद्ध अपराधी के दंड को निलंबित या स्थगित करके उसे जेल के दूषित वातावरण से बचाकर समाज में रहकर सुधारने का अवसर देना होता है ।
- अपराधी जन्म से ही पैदा नहीं होते हैं की धारणा पर आधारित है।
- एक उपचारात्मक कार्यक्रम जो अपराधी को सामाजिक समायोजन की सुविधा प्रदान करता है।
- परिवीक्षा न्यायालय द्वारा प्रदान की जाती है!
- इसका मांग करने पर न्यायालय न्यायालय परीक्षा अधिकारी से अपराधी के जन्म से लेकर अदालत तक पहुंचने तक की अवधि का पूरा अध्ययन करवाती है।
- परीविक्षा अधिकारी का निगरानी से रहते हुए अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अनुसार सदव्यवहार करने का अपराधी द्वारा वचन दिया जाता है।
- पहली बार अपराध करने वाले अपराधियों को बाल अपराधियों को व कमजोर अपराधियों को दंड का भय दिखाकर व चेतावनी देकर सुधारना।
- कलंकित जीवन एवं जेल के दूषित वातावरण से छुटकारा दिलाना
- कम अवधि की सजा का विकल्प है क्योंकि कम अवधी की सजा जेल का डर समाप्त कर देती है
- जेल में छोटी अवधि में अपराधी का सुधार संभव नहीं होता है और कलंक भी लग जाता है।
- सामाजिक परिस्थितियों में समायोजन व पुनर्वास परिवीक्षा अधिकारी के माध्यम से सहायता देना !
- अपराधिक न्याय प्रणाली सहयोग एवं तालमेल।
- परिवीक्षा अधिनियम 1958 की धारा 3 के अनुसार आईपीसी की धारा 379, 380, 381, 420 के तहत दोषी सिद्ध या आईपीसी या किसी अन्य कानून के तहत 2 साल की अवधि से दंडित अपराधी के पहली बार दोष सिद्धि अपराधियों को चेतावनी के बाद
- या उपरोक्त अधिनियम की धारा 4 के अनुसार मृत्युदंड या आजीवन कारावास एवं दंड से दंडित अपराधी के दंड की कुछ समय तक निलंबित करने के लिए परिवीक्षा या निम्न शर्तों पर छोड़ने का प्रावधान है:
- परीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर अदालत विचार करती है।
- प्रोबेशनर को भविष्य में शब्द व्यवहार बनाए रखने के लिए बाध्य पर बांड भरना पड़ता है
- तथा किसी व्यक्ति की जमानत देनी पड़ती है।
- परिवीक्षा अधिकारी की आज्ञा के बिना निवास स्थान नहीं बदलेगा तथा नशे आदि से दूर रहेगा।
- परिवीक्षा अवधि के दौरान प्रोबेशनर परिवीक्षा अधिकारी से निरंतर संपर्क रखेगा और उसके नियंत्रण एवं निर्देश में कार्य करेगा
- अधिनियम की धारा 5 के तहत अदालत अपराधी को परिवीक्षा पर छोड़ते समय पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा अदा करने का हुक्म दे सकती है।
- धारा 9 के अनुसार यदि अपराधी परिवीक्षा अधिकारी की शर्तों का उल्लंघन करता है तो अपराध की निर्धारित सजा का आदेश अदालत दे सकती है
- पैरोल अधिकारी के संरक्षण में रहकर अच्छा व्यवहार करेगा वह किसी कानून का उल्लंघन नहीं करेगा।
- पैरोल अधिकारी के संपर्क में रहेगा वह अपने बारे में सही सही सूचनाएं निरंतर देते रहेगा।
- पैरोल अधिकारी के आज्ञा के बिना निवास स्थान और नौकरी नहीं बदलेगा राज्य से बाहर जाएगा और ना ही विवाह करेगा।
- नशीली वस्तुओं व औषधियों का सेवन नहीं करेगा
- पैरोल की शर्तों का उल्लंघन करने पर बकाया सजा काटने के लिए जेल भेज दिया जाता है।
- दूसरे कैदियों को जेल में अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा देता है।
- सरकारी धन की बचत कराता है।
- अपराधी का परिवार टूटने से बचाता है
- पैरोल अधिकारी के निर्देश व नियंत्रण अपराधी को समाज में समायोजन व पुनर्वास का अवसर मिलता है।
- परिवीक्षा (Probation)
- परिवीक्षा न्यायालय द्वारा सजा सुनाते वक्त मुक्त किया जाना।
- परिवीक्षा अधिकारी द्वारा अपराधी के जन्म से लेकर सजा सुनाने तक की अवधि के दौरान के आचरण के मूल्यांकन पर आधारित है न्यायालय द्वारा स्वीकृत।
- परिवीक्षा अधिनियम 1958 सीआरपीसी की धारा 360 के तहत
- यह सुधार का सबसे पहला कदम है।
- धारा 361 सीआरपीसी की रोशनी में एक अधिकार की तरह मांगा जा सकता है।
- पैरोल (Parole)
- न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा का कुछ भाग जेल में बिताने के बाद मुक्त किया जाता है
- जेल अधिकारी द्वारा अपराधी के जेल में किए गए आचरण का मूल्यांकन के आधार पर दिया जाता है।
- प्रशासकीय बोर्ड या सलाहकार बोर्ड द्वारा स्वीकृत की जाती है।
- जेल मैनुअल के तहत इसका विवरण दिया गया होता है।
- यह सुधार का आखरी कदम है।
- यह जेल प्रशासन का अपराधी पर एक एहसान है कि अपराधी का अधिकार है।
8.सुधारात्मक संस्थाएं
- बाल अपराधियों से संबंधित संस्थाएं किशोर ,(Juvenile Home)गृह तिरस्कृत या उपेक्षित(Neglected) बच्चों के लिए(Sec 9 of J.J. Act 1986) किशोर न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत स्थापित किया गया है
- विशेष गृह (Special Home) दोष सिद्बाध बाल अपराधियों के लिए(Sec 10 of J.J. Act)
- पर्यवेक्षण गृह (Observation Home) विचाराधीन बाल अपराधियों के लिए
- उपरोक्त तीनों गृहों में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक शिक्षा व चरित्र विकास की व्यवस्था होती है।
- जैसे नज्योति नशा उन्मूलन संस्था
- प्रयास बेसहारा व शोषित बच्चों के लिए
- SOS चिल्ड्रन विलेज अनाथ और अपेक्षित बच्चों के लिए
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