योग क्या है और योग का शाब्दिक अर्थ क्या होता है ?

योग के पिछले पोस्ट में हमने योग दिवस को 21 जून को मनाया जाता है उसके बारे में जानकारी प्राप्त किया इस पोस्ट  में हम योग क्या है और उसका शाब्दिक अर्थ क्या होता है इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे  !



जैसे की आप जानते है की 21 जून को योग दिवश मनाया जाता है इसी से सम्बंधित एक योग वर्कशॉप में मुझे भी जाने का मौका मिला और वहा पे जो सिखने को मिला उसी को मै सोचा की क्यों नहीं एक ब्लॉग पोस्ट लिख कर शेयर किया जाए, उसी को एक ब्लॉग के रूप में शेयर कर रहा भाग   !


आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम योग के निम्न बातो को जानेगे :

1. योग का शाब्दिक अर्थ (Yog ka shabdik arth)

2. योग का इतिहास और विकाश (Yog ka itihas aur vikash)
3. योग के कुछ चमत्कारिक बाते (Yog ke kuchh adybhut bate)

1. योग का शाब्दिक अर्थ (Yog ka shabdik arth): सार  के रूप  कहे तो योग आध्यात्मिक अनुशासन एवं अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है जो मन और शारीर के बिच सामंजस्य स्थापित करता है !

यह स्वस्थ जीवन की कला विज्ञान है पाणिनीय व्याकरण के अनुसार यह तीन अर्थो में प्रयुक्त होता है :
  1. यूज समाधौ = समाधि
  2. युजिर योगे = जोड़ 
  3. यूज संयमने = सामंजस्य

यौगिक ग्रंथो के अनुसार , योग अभ्यास व्यक्तिगत चेतनता को सार्वभौमिक चेतनता के साथ एकाकार कर देता है !आधुनिक वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है वह परमाणु का प्रकटीकरण मात्र है !


योग  का प्रयोग आतंरिक विज्ञान के रूप में भी किया जाता है , जो विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओ को सम्मिलन है , जिसके माध्यम से मनुष्य शारीर एवं मन के बिच सामंजस्य स्थापित कर आत्म साक्षत्कार करता है ! 

2. योग का इतिहास और विकाश (Yog ka itihas aur vikash): योग विद्या का उद्भव हजारो वर्ष प्राचीन है ! श्रुति परम्परा के अनुसार भागवान  शिव को  योग विद्या के प्रथम आदि गुरु , योगी या आदियोगी है ! हजारो हजार वर्ष पूर्व हिमालय में कांति सरोवर झील के किनारे आदियोगी के योग का गूढ़ ज्ञान पौराणिक सप्त ऋषियों को दिया था !

इस सप्त ऋषयो ने इस अत्यंत महत्वपूर्ण योग विद्या को एशिया , मध्य पूर्व , उतारी अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका सहित विश्व के अलग अलग भागो में प्रसारित किया !


आधुनिक विद्वान सम्पूर्ण पृथ्वी की प्राचीन संस्कृतियों में एक समानता मिलने पर अचंभित है , यह एक अत्यंत रोचक तथ्य है ! वह भारत भूमि ही है , जहा पर योग की विद्या पूरी  तरह अभिव्यक्त हुई !

भारत उपमहाद्वीप में भ्रमण करने वाले सप्त ऋषियों एवं अगस्त्य मुनि ने इस योग संस्कृति को जीवन के रूप में विश्व के प्रत्येक भाग में प्रसारित किया !

योग  का व्यापक स्वरुप तथा उसका परिणाम सिन्धु एवं सरस्वति नदी घाटी सभ्यताओ 2700 ई.पू  की अमर  संस्कृति का प्रतिफलन मन जाता है ! योग ने मानवता के मूर्त और आध्यात्मिक दोनों रूपों को महत्वपूर्ण बनाकर स्वाम को सिद्ध किया है !

सिन्धु सरस्वती घटी सभ्यता में योग साधना करती अनेक आकृतियो के साथ प्राप्त ढेरो मुहरे एवं जीवाश्म अवशेष इस बात के प्रणाम है की प्राचीन भारत में योग अस्तित्व था !सरस्वती घाटी सभ्यता में प्राप्त देवी एवं देवताओ की मुर्तिया एवं मुहरे तंत्र योग का संकेत करती है !

योग का अभ्यास पूर्व वैदिक काल में भी किया जाता था ! महर्षि पतंजलि ने उस समय के प्रचलित प्राचीन योग अभ्यासों को व्यवस्थित व वर्गीकृत किया और उनके निहित्तार्थ और इससे सम्बंधित ज्ञान को पातंजलयोगसूत्र  नमक ग्रन्थ में क्रमबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया !

3. योग के कुछ अत्यंत रोचक चमत्कारिक बाते (Yog ke kuchh adybhut bate):व्यक्ति की शारीरिक क्षमता , उसके मन व भावनाए तथा उर्जा के स्टार के अनुरूप योग कार्य करता है ! इसे व्यापक रूप से चार वर्गों में विभाजित किया गया जो इस प्रकार से है :
  1. कर्मयोग में हम शारीर का प्रयोग करते है !
  2. ज्ञानयोग में हम मन का प्रयोग करते है !
  3. भक्तियोग में हम भावना का प्रयोग करते है 
  4. क्रियायोग में हम उर्जा योग का प्रयोग करते है !
योग की जिस प्रणाली का हम अभ्यास करते है वह एक दुसरे से आपस में कई स्तरों पर मिली जुली हुई होती है !प्रत्येक व्यक्ति इन चारो योग कारको का एक अद्वितीय संयोग है ! केवल एक समर्थ गुरु (टीचर) ही योग्य साधक को उसके आवश्यकतानुसार आधारभूत योग सिद्धांतो का सही सयोजन करा सकता है !इसी लिए कहा जाता है की योग की शिक्षा एक योग्य शिक्षक के अधीन ही शुरू करना चाहिए !

इस प्रकार से योग के शाब्दिक अर्थ तथा योग का इतिहार और विकाश से सम्बंधित ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुई !उम्मीद है की ये पोस्ट पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट हो तो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे  और इस ब्लॉग को सब्सक्राइब तथा फेसबुक पेज  लाइक करके हमलोगों को और प्रोतोसाहित करे बेहतर लिखने के लिए !
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