जैसे की हम जानते है की योग के अलग अलग सम्प्रदायों , परम्परा , दर्शनों, धर्मो एवं गुरु शिष्य परम्परा के चलते भिन्न भिन्न पारंपरिक पठाशालाओ का मार्ग होते हुए आज इतने उचाई पर पंहुचा है ! इनमे ज्ञानयोग , भक्तियोग, कर्मयोग , पतंजल योग , कुंडलिनीयोग , हठयोग , ध्यानयोग , मन्त्र योग , राजयोग , जैन योग , बौध योग आदि नाम के समूह या पाठशाला सम्मिलित है !इन प्रत्येक समप्रदाय के अपना अलग दृष्टिकोण और अभ्यास क्रम है जिसके माध्यम से प्रत्येक योग सम्प्रदायों या समूहों ने योग के मूल उद्देश्य और लक्ष्य तक पहुचने में सफलता प्राप्त कराने में एक अहम भूमिका अदा की !
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निम्नलिखित यौगिक अभ्यास है जो की सर्वाधिक अभ्यास किये जाते और उसका महत्व :
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यम : यह प्रतिरोधक एवं नियम अनुपलिनीय है ! इसे योग अभ्यासों को शुरू करने से पहले करना आपेक्षित और अनिवार्य माना जाता है !
- आसन :इस का अभ्यास शारीर एवं मन में स्थायित्व लाने में सक्षम है ! आसन का अभ्यास महत्वपूर्ण समय सीमा तक मनोदैहिक विधि पूर्वक अलग अलग करने से स्वाम के अस्तित्व के प्रति दैहिक स्थिति एवं स्थिर जागरूकता बनाये रखने की योग्यता प्रदान करती है !
- प्राणायाम : श्वास – प्रश्वास प्रक्रिया का सुव्यवस्थित एवं नियमित अभ्यास है ! यह श्वसन प्रकिर्या के पार्टी जागरूकता उत्पन्न करने एवं उसके पश्चात् मन के प्रति सजगता उत्पन्न करने तथा मन पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता करता है !इस अभ्यास की परम्भिक अवस्था में श्वास – प्रश्वास प्रक्रिया को सजगता पूर्वक किया जाता है !बाद में यह क्रिया नियमित रूप से नियंत्रित एवं निर्देशित प्रकिया के माध्यम से नियमित हो जाती है !प्राणायाम का अभ्यास नासिका , मुख एवं शारीर के अन्य छिद्रों तथा शारीर के आतंरिक एवं बहरी मार्गो तक जागरूकता बढ़ता है !प्राणायाम अभ्यास के दौरान नियमित , नियंत्रित और निरीक्षित प्रिकिर्य द्वारा श्वास के अन्दर लेना पूरक कहलाता है !नियमित , नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा स को शारीर के अन्दर रोकने की अवस्था को कुंभक नियमित , नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा स को शारीर के बहार छोड़ना रेचक कहलाता है !
- प्रत्याहार : इस प्रक्रिया के अभ्यास से व्यक्ति अपनी इन्द्रियो के मध्यम से सांसारिक विषय का त्याग कर अपने मन तथा चैतन्य केंद के एकीकरण का प्रयास करता है !
- धारणा: इस प्रक्रिया के अभ्यास से मनोयोग के व्यापक आधार क्षेत्र के एकीकरण का प्रयास करता है, यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है !
- ध्यान : इस प्रक्रिया में चिंतन एवं एकीकरण रहने पर कुछ समय पश्चात् यह समाधि की अवस्था में परिवर्तित हो जाता है !
- बांध एवं मुद्रा : यह ऐसे अभ्यास है जो प्राणायाम से सम्बंधित है ! ये उच्च यौगिक अभ्यास के प्रसिद्द रूप माने जाते है जो मुख्य रूप से नियंत्रित श्वसन के साथ विशेष शारीरिक बंधो एवं विभिन्न मुद्राओ के द्वारा किया जाता है ! यही अभ्यास आगे चलकर मन पर नियंत्रण स्थापित करता है और उच्चतर यौगिक सिद्धियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है ! हलाकि ध्यान का अभ्यास जो व्यक्ति को आत्मबोध एवं श्रेष्ठता की ओर ले जाता है ! योग साधना पद्धति का सार मन जाता है !
- षट्कर्म : शारीर एवं मन शोधन का सुव्यवस्थित एवं नियमित अध्यास है जो शारीर में एकत्रित हुए विषैले पदार्थो को हटाने में सहायता प्रदान करता है !
- युक्ताहार : स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त सुव्यवस्थित एवं नियमित भोजन का समर्थन करता है !
- मन्त्र जाप : मंत्रो का चिकित्सीय पद्धति से उच्चारण ही जाप अथवा दैवीय नाम कहलाता है !मन्त्र जाप सकारात्मक मानसिक उर्जा की सृष्टि करता है जो धीरे धीरे तनाव से बहार आने में सहायता करता है !
- युक्त कर्म : स्वास्थ्य जीवन के लिए सम्यक कर्म की प्रेरणा देता है !
- शौच : शौच का अर्थ है शोधन , यह योग अभ्यास के लिए एक महत्वपूर्ण एवं पूर्व आपेक्षित a है ! इसके अंतर्गत आसपास का बातावरण शारीर एवं मन की शुद्धि की जाता है !
- योग अभ्यास शांत वातावरण में आराम के साथ शारीर एवं मन को शिथिल करके किया जाना चाहिए !
- योग अभ्यास खाली पेट अथवा अल्पाहार लेकर करना चाहिए ! यदि अभ्यास के समय कमजोरी महसूस होतो गुनगुने पानी थोडा सी शहद मिलाकर लेना चाहिए !
- योग अभ्यास मल एवं मूत्र का विशार्जन करने के उपरांत प्रारम्भ करना चाहिए !
- अभ्यास करने के लिए चटाई , दरी कम्बल अथवा योग मत का प्रयोग करना चाहिए !
- अभ्यास करते समय शारीर की गतिविधि आसानी से हो इसके लिए सूती के हल्के और आरामदायक वस्त्र पहनना चाहिए !
- थकावट , बीमारी, जल्दीबाजी एवं तनाव की स्थति में योग नहीं करना चाहिए !
- यदि पुराने रोग , पीड़ा एवं हृदय सम्बंधित समस्या होतो एसी स्थिति में योग अभ्यास शुरू करने से पहले चिकित्सक अथवा योग विशेषग्य से परामर्श लेना चाहिए !
- अभ्यास सत्र प्रार्थना अथवा स्तुति से प्रारम्भ करना चाहिए क्योकि प्रार्थना अथवा स्तुति मन एवं मस्तिष्क को विश्राम प्रदान करने के लिए शांत वातावरण निर्मित करता है !
- योग अभ्यास आरामदायक स्थिति में शारीर एवं श्वास प्रश्वास की सजगता के साथ धीरे धीरे प्रारम्भ करना चाहिए !
- अभ्यास के समय श्वास – प्रश्वास की गति रोकनी नहीं चाहिए जब तक की आपको ऐसा करने के लिए विशेष रूप से खा न जाए !
- श्वास प्रश्वास सदैव नासारर्न्ध्रो से ही लेना चाहिए जब तक की आपको अन्य विधि से श्वास प्रश्वास लेने के लिए न कहा जाय !
- अभ्यास के समय शारीर को शिथिल रखे और शारीर को सख्त नहीं करे ! शरीर को किसी भी प्रकार से झटके से बचाए !
- अपनी शारीर एवं मानसिक क्षमता के अनुसार ही योग अभ्यास करना चैये ! अभ्यास के अच्छे परिणाम आने में कुछ समय लगता है ! इसलिए लगातार और नियमित अभ्यास बहुत आवश्यक है !
- प्रत्येक योग अभ्यास के लिए ध्यातव्य निर्देश एवं सावधानिया तथा सीमाए होती है !
- योग सत्र का समापन सदैव ध्यान एवं गहन मौन तथा शांति पाठ से करना चाहिए !
- अभ्यास के 20-30 मिनट के बाद स्नान करना चाहिए !
- अभ्यास के 20-30 मिनट बाद ही आहार ग्रहण करना चाहिए !